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स्टडी में शामिल रिसर्चरों में से एक डॉक्टर साजेश शिवदास का कहना है कि “पारा त्वचा के जरिए शरीर में داخل (داखिल) हो जाता है और किडनी के फिल्टर को खराब कर देता है. इसकी वजह से नेफ्रोटिक सिंड्रोम के मामले बढ़ रहे हैं.” डॉक्टर शिवदास कोट्टायकल, केरल के आस्टर MIMS हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजी विभाग में काम करते हैं.
डॉक्टर आगे कहते हैं कि “ये क्रीम भारत के बिना नियम वाले बाजारों में आसानी से मिल जाती हैं और कम समय में गोरापन का फायदा देने का वादा करती हैं. लेकिन ये फायदा किस कीमत पर मिल रहा है? बहुत बार लोग इन क्रीमों को लगाने के आदी हो जाते हैं और इन्हें लगाना बंद करने पर उन्हें लगता है कि उनका रंग और भी ज्यादा काला हो गया है.”
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शोधकर्ताओं का कहना है कि “ज्यादातर मामलों में इन क्रीमों को लगाना बंद करने के बाद मरीज ठीक हो गए. इससे ये एक संभावित जन स्वास्थ्य समस्या बनकर उभरती है. जरूरी है कि लोगों को इन प्रोडक्ट्स के खतरे के बारे में जागरूक किया जाए और स्वास्थ्य विभाग को भी ऐसे उत्पादों को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए.”
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Credit : Rajasthan Patrika