वित्तीय वर्ष 2022-23 में उदयपुर जिले की तीनों वन मंडल में मिलाकर कुल 530 बार जंगल में आग की घटनाएं हुई। जबकि समाप्त होते वित्तीय वर्ष 2023-24 में अब तक 744 दफा आग लग चुकी है। सर्वाधिक घटनाएं उदयपुर वन मंडल में हुई हैं। वहीं उससे कम वन मंडल उत्तर में। सबसे कम वन्य जीव मंडल में हुई, जहां सघन वन क्षेत्र है। जाहिर है जिन जंगलों के आस-पास मानवीय दखल बढ़ा है, वहीं सर्वाधिक घटनाएं हो रही है। इन दिनों की बात करें तो सबसे अधिक समय तक चलने वाली आग केवड़ा की नाल में देखी जा रही है, जहां पिछले करीब पंद्रह दिनों से लगातार रह-रह कर आग भड़क रही है।… जब हेलिकॉप्टर से बुझानी पड़ी आग
पिछले वर्षों में उदयपुर के जंगलों में आग इतना विकराल रूप ले चुकी कि बुझाने के लिए सेना की मदद ले चुकी। सेना के हेलिकॉप्टर की मदद से सज्जनगढ़ और बांकी वनखंड में आग बुझाई गई। जानकारों के अनुसार राजस्थान सूखा प्रदेश होने के कारण भी जंगल में आग की घटनाएं अधिक होती है। खासकर उदयपुर के जंगल में सागवान के पेड़ अधिक है। जिनके सूखे पत्ते अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं।
अच्छी भी होती है जंगल की आगजानकारों के अनुसार एक सीमित दायरे में लगने वाले आग जंगल के लिए अच्छी भी मानी जाती है। इससे जहां वृक्षों को नुकसान पहुंचे वाले कीट मर जाते हैं। जंगली वनस्पति की बीमारियां नष्ट हो जाती है। वृक्षों के लिए उपयोगी उर्वरक प्राकृतिक तौर पर तैयार हो जाते हैं।
जानें, क्यों लगती है जंगल में आग प्राकृतिक कारण : – बांस की रगड़ से – पत्थरों की रगड़ से मनुष्य जनित कारण – आदिवासी समुदाय में मन्नत पूरी होने पर मगरा स्नान की परम्परा के कारण जंगल में आग लगाई जाती है।
– ग्रामीण जंगल में महुआ के फूल से कच्ची शराब बनाने के लिए भट्टियां बनाते हैं, जिन्हें जलती छोड़ देते हैं। – महुआ के फूल एकत्रित करने के लिए ग्रामीण पेड़ों के नीचे आग लगा देते हैं।
– शहद एकत्रित करने से पहले छत्तों से मधुमिक्खयां उड़ाने के लिए। – जंगल के आस-पास ग्रामीण क्षेत्र में कच्चे घर बनाने के लिए केलूू पकाने के कारण। – जंगल के आसपास भूमि पर अतिक्रमण के उद्देश्य से भी आग लगा दी जाती है।
– वाहनों के एग्जास्ट पाइप साफ नहीं होने से निकलने वाली चिंगारी सूखे पत्तों के सम्पर्क में आने से।- जलती हुई बीड़ी, सिगरेट सूखे पत्तों पर फेंकने से चिंगारी आग का रूप ले लेती है।
आग पर काबू पाने के लिए क्या करता है वन विभाग – जंगलों में जगह-जगह छह मीटर चौड़ी व सौ से दो सौ मीटर लम्बी पट्टीनुमा मिट्टी खोदकर फायर लाइन बनाई जाती है।- हर साल पतझड़ से पहले फरवरी माह में फायर लाइन को साफ करवाया जाता है।
– बीटिंग तकनीक के जरिए लम्बे बांस व पत्तियों के जरिए आग बुझाने के प्रयास किए जाते हैं। – लोहे के रेक्स से अग्नि प्रभावित क्षेत्र के चारों ओर की पत्तियों को साफ करके- काउंटर फायर जलाकर
– नई तकनीक में एयर ब्लोअर के जरिए सूखे पत्तों को आस-पास से उड़ाकर – आग के विकराल रूप लेने पर हेलिकॉप्टर के जरिए एरियल मैथोड से – तलहटी में जहां तक पहुंच हो दमकल की मदद ली जाती है।
उदयपुर जिले के जंगल में आग की घटनाएं वन मंडल 2022-23 2023-24 उदयपुर 242 379 उदयपुर उत्तर 252 317 वन्य जीव 036 048 कुल 530 744 पहले ग्रामीण वन विभाग की आग बुझाने में मदद किया करते थे। इसके लिए वे बाकायदा ढोल ढमाके के साथ लोगों का आह्वान करते थे। लेकिन अब जागरूकता की कमी आई है। ऐसे में वन विभाग ने ग्राम वन संरक्षण समितियों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य शुरू किया है। जंगल की आग के कारण मानव जनित व प्राकृतिक दोनों होते हैं। प्रकृति स्वयं भी एक हद तक आग को नियंत्रित करती है। अब समय के साथ तकनीक का भी सहारा लिया जाने लगा है।
डॉ.सतीश शर्मा, सेवानिवृत्त, आईएफएस
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Credit : Rajasthan Patrika